दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने 23 सितंबर को जिस तरह से पदभार संभाला था, उसकी ख़ूब चर्चा है.
पदभार संभालते वक़्त आतिशी ने अपने बग़ल में छोड़ी ख़ाली कुर्सी की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, ”दिल्ली के मुख्यमंत्री की ये कुर्सी अरविंद केजरीवाल की है.”
इस दौरान उन्होंने ख़ुद की तुलना ”भरत” और अरविंद केजरीवाल की तुलना ”श्रीराम” से की. आतिशी ने कहा, ”जैसे भरत ने 14 साल भगवान श्री राम की खड़ाऊं रखकर अयोध्या का शासन संभाला, वैसे ही मैं चार महीने दिल्ली की सरकार चलाऊंगी.”
आतिशी साल 2013 में आम आदमी पार्टी से जुड़ीं. वो साल 2015 से लेकर 2018 तक दिल्ली के तत्कालीन शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया की सलाहकार के तौर पर काम कर रही थीं. बाद में दिल्ली सरकार में मंत्री बनीं और अब मुख्यमंत्री हैं.
आतिशी बतौर मुख्यमंत्री क्या छाप छोड़ पाएंगी, इस पर तरह-तरह के कयास लग रहे हैं. उनकी शैली पर भी ख़ूब चर्चा हो रही है.
सवाल ये भी है कि ख़ाली कुर्सी बग़ल में लगाकर आतिशी ने जिस तरह से प्रेस कॉन्फ़्रेंस की उसके लोकतांत्रिक देश में क्या मायने हैं? क्या ये क़दम मुख्य विपक्षी भाजपा के लिए नई चुनौती पेश करेगा? क्या कम्युनिस्ट विचारधारा के परिवार से आने वालीं आतिशी भी आम आदमी पार्टी के ‘सॉफ़्ट हिंदुत्व’ वाली छवि को ही आगे बढ़ा रही हैं?
बीबीसी हिन्दी के ख़ास साप्ताहिक कार्यक्रम ”द लेंस” में कलेक्टिव न्यूज़रूम के ”डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़म” मुकेश शर्मा ने कुछ ऐसे ही सवालों पर ख़ास चर्चा की.
इस चर्चा में आम आदमी पार्टी के विधायक राजेश गुप्ता, राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार आशुतोष और वरिष्ठ पत्रकार रूपश्री नंदा शामिल हुईं.